शुक्रवार, 4 मार्च 2022

Revati

 भगवान!

आप के वास्तविक स्वरूप को जानने वाला पुरुष आपके दिए हुए पुण्य और पाप कर्मों के फल सुख एवं दुखों को नहीं जानता, नहीं भोगता; वह भोग्य और भोक्ता पन के भाव से ऊपर उठ जाता है। उस समय विधि-निषेध के प्रतिपादक शास्त्र भी उस से निवृत हो जाते हैं; क्योंकि वह देहा भिमानियो के लिए है।उनकी ओर तो उसका ध्यान ही नहीं जाता।

जिसे आप के स्वरूप का ज्ञान नहीं हुआ है, वह भी यदि प्रतिदिन आपकी प्रत्येक युग में की हुई लीलाओं, गुणोंका गान सुन-सुनकर उनके द्वारा आपको अपने हृदय में बैठा लेता है तो अनंत, अचिंत्य, दिव्यगुणगणोंके निवास स्थान प्रभो!आपका वह प्रेमी भक्त भी पाप- पुण्यो के फल सुख-दुखो और विधि-निषेधो से अतीत हो जाता है। क्योंकि आप ही उनकी मोक्ष स्वरुप गति है।(परन्तु इन ज्ञानी और प्रेमियों को छोड़कर और सभी शास्त्र बंधन में है तथा वे उसका उल्लंघन करने पर दुर्गति को प्राप्त होते हैं)।10/87/40/27वेदस्तुति




परमार्थ निरूपण

भागवत धर्म

यदुकुल संहार

स्वधामगमन

कलियुगी राजा

धर्म 

नाम संकीर्तन

प्रलय



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Index

परमार्थ निरूपण  बद्रिकाश्रम गमन  यदुकुल संघार  स्वधाम गमन  वंश राजवंश  धर्म  नाम संकीर्तन  प्रलय