गुरुवार, 31 मार्च 2022

1 परमार्थ निरूपण,11/28

  1. भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—उद्धवजी! यद्यपि व्यवहारमें पुरुष और प्रकृति—द्रष्टा और दृश्यके भेदसे दो प्रकारका जगत् जान पड़ता है, तथापि परमार्थ-दृष्टिसे देखनेपर यह सब एक अधिष्ठान-स्वरूप ही है; इसलिये किसीके शान्त, घोर और मूढ़ स्वभाव तथा उनके अनुसार कर्मोंकी न स्तुति करनी चाहिये और न निन्दा। सर्वदा अद्वैत-दृष्टि रखनी चाहिये ⁠।⁠।⁠१⁠।⁠।
  2.  भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि उद्धव जी यद्यपि व्यवहार में पुरुष और प्रकृति दृष्टा और दृष्टि की वेज से दो प्रकार का जगत जान पड़ता है तथा भी परमार्थ दृष्टि से देखने पर यह सब एक अधिष्ठान शुरू की है इसलिए किसी के शांत, घोर और और मूढ़ स्वभाव तथा उसके अनुसार कर्मों की ना स्तुति करनी चाहिए और न निंदा। सर्वदा अद्वैत दृष्टि रखनी चाहिए।
  3. जो पुरुष दूसरों के स्वभाव और उनके कर्मों की प्रशंसा अथवा निंदा करते हैं वह शीघ्र ही अपने यथार्थ परमार्थ साधन से च्युत हो जाते हैं क्योंकि साधन तो द्वैत के अभिनिवेश का-- उसके प्रति सत्यत्व- बुद्धि का निषेध करता है और प्रशंसा तथा निंदा उसकी सत्यता के भ्रम को और भी दृढ़ करती है।


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